• २०८१ मंसिर १७ सोमबार

वो जो था

हरि मोहन

हरि मोहन

वो जो आदमी था,
चला गया ।
न जाने कितनों को
उसने छला,
कितनों से छला गया ।

सब कुछ है यों तो उसमें,
पर-
वही नहीं है ।

ऐसा होता है कभी
हम होते हैं,
चाहे- अनचाहे
लोगों के बीच
चले जाते, कभी भी, कहीं भी
रखकर खाली, अपना शरीर ।
नहीं रहते वहां-
होते जहां ।

ठीक ऐसे ही किसी
दिवास्वप्न में-
वो चला गया ।


(कवि, कथाकार एवं समीक्षक/ आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत)
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