वह जो निर्झर सा
झर रहा है प्रेम में तुम्हारे
उसकी गति को ठांव दो
तुम आंचल में अपने
उसका दुख सीमाओं में
बंध जाना चाहता है तुम्हारे
मुक्ति पथ पर बांट जोहता
खड़ा है वह मुतांजिर सा
सदियों से
पिघल रहा है चट्टानों सा
बह रहा है दरिया सा
समेट लो तुम उसकी
पराकाष्ठाएं बाहें फैलाएं
जो पुकार रहा है तुम्हें निरन्तर
गीतों में, गजलों में, मुक्तकों में
कर रहा है समर्पण प्रेम का
तुम समेट लो संग्रह की
भूमिका सा उसे
हताश होने से पहले ।
(शिक्षिका एवं लेखिका कई कविता संग्रह प्रकाशित, सिलीगुढ़ी पश्चिम बंगाल, भारत)
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