• २०८१ माघ २ बुधबार

भोजपुरी

रामप्रसाद साह

रामप्रसाद साह

अँखिया लाल भइल धार बही लोरवा से
निशा रतिया बितले उगले भिलोरवा से
कटे ना कटे दिनवा पहाड भइले ना
कइसे मानी रामा ललना रोवे कोरवा से
बहते बहते रामा सुखी गइले रतिया
मुँह भइले करिया सुखले ठोरवा से
कि खइले किरिया फिरी आवे ना नगरिया
कुहुकी रोवे मन लउकके ना अँजोरवा से
छपरी छवाई के ? टाट बोट अंगरल हो
कइसे कटी जिनगी कब होई भोरवा से ।
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(अध्यक्ष, नेपाल भोजपुरी प्रतिष्ठान बारा कलैया, स्वतंत्र लेखन,६ कृतियाँ प्रकाशित)

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