• २०८१ माघ ५ शनिवार

दर्द की गाँठ

बिशन सागर

बिशन सागर

कुछ बारिशें
बाहर बरस कर
बिखेरती हैं एक
सोंधी खुशबु
और
कुछ बारिशें
भीतर बरसकर
दे जाती हैं
रिश्तों में कुछ
दर्द की गाँठें
जो दिल के झरोखों
में सहती हैं
पीड़ाएँ ।
सिसकती हैं अक्सर
सपनों की
कातर आँखें ।
सालता रहता है
अन्तरमन को
एक अकेलापन,
एक अधूरापन ।
इस दर्द की
गीली राख
न तो जलती है
और
न ही बुझती है
बस
सुलगती रहती है
बरसों तक

(स्वतंत्र लेखन जालन्धर, पंजाब, चार कविता संग्रह प्रकाशित)

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