आँखि पसारिकऽ देखू,
केहन बनल अछि देशक हाल,
गरीबहा सब अन्न–अन्न कऽ मरै,
मिडिल क्लासक हाल बेहाल,
आँखि पसारिकऽ देखू,
केहन बनल अछि देशक हाल ।
मन्त्री नेता, शानसँ घूमय,
चारि चकियामें भऽ सबार,
बालकनीमें बसि धनिकहा,
चाय पिबथि पढथि अखबार,
ऊपरेसँ पूछथि की हाल चाल,
आँखि पसारिकऽ देखू,
केहन बनल अछि देशक हाल ।
खतम भऽगेल सब खेल तमाशा,
छूटिगेल सबहक रोजी रोटी,
घर घरमें जे निघैंट गेलै आब,
दाइल चाउरक भरल कोठी,
नोंइच नोंइच की खेता आब खाल ।
आँखि पसारिकऽ देखू,
केहन बनल अछि देशक हाल ।
ककरा लग जेतै हाथ पसारऽ,
सबतरि बहलछै एकहि बसात,
भूखल पेट जे मूसबा कुदकय,
पानि पिबि करैतछै परात,
सुखाकऽ कारी भऽ गेल छै,
आब की देखब मुंह लाल लाल ।
आँखि पसारिकऽ देखू,
केहन बनल अछि देशक हाल ।
पहाडमें पहिरो, तराईमें दाहर,
बज्र खसाबे विधाता गरीबहे कपार,
बाल बच्चा सब अनाथ भेल छै,
के करत ओकर प्रतिपाल ।
आँखि पसारिकऽ देखू,
केहन बनल अछि देशक हाल ।
(स्वतंत्र लेखन)
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