कविता

हमरा बुझल अछि
देखने छि गरीबी के बड लगसे,
ताहिसे बुझल अछि,
इच्छा पूरा करैक चाहत,
कि होइत छैक,
जखन ककरो देखलौं,
दर्दमें तडपईत,
त लागल इ दर्द,
ओकर नहि हमर छि,
कियाक त हमरा बुझल अछि,
दर्द से तडपइक टिस केहन होइत छैक ।
फूलके जं देखलौं टुटइत,
अपन डाइरसे,
त अनुभव भेल स्वयम् से टूटबाक,
कियाक त हमरा बुझल अछि,
बियाहक बाद बेटी के माय से दूर भेनाई,
केहेन होइत छैक ।
हमरा बुझल अछि,
अपनसे बिछोडक दुख,
कियाक त हम अपने,
घरमें देखने छि,
जखन कियो कुसमय,
सदाके लेल छोइड जाइत छथि,
त ओ विदाई केहेन होइत छैक ।
हमरा बुझल अछि ।
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