• २०८२ कार्तिक १९, बुधबार

अनिल कुमार मिश्रका दो कविताएँ

१. स्नेह-डोर

एक मानव को
दूजे मानव पर गुस्सा आया
दोनों ने कोहराम मचाया
तू तू मैं मैं, मैं मैं तू तू
पथ पर जाते हुए पथिक नें
स्नेह, प्रेम का पाठ पढ़ाया
समझ ना आया
क्लेश बढ़ा
हाथापाई पर बात बन आयी
प्रेम से रोटी बाँट कर, खाकर
एक श्वान आया, उन्हें बताया
तुम दोनों ही गुस्से में हो
रुक जाओ थोड़ा
पानी पी लो
सोचो आखिर
इस झगड़े का मूल था क्या
लड़ना क्या आवश्यक है
या है इसका
कोई विकल्प
सोचो तो, थोड़ा रुक कर ।
दोनों मानव ने बात सुनी
उस वीर श्वान की
ठहरे पल भर,
पानी पीकर
सोचा और विचारा कुछ-कुछ
बनी सहमति उन दोनो में
नहीं लड़े फिर,
एक हुए
मन ही मन निर्मल-हृदय
श्वान को वंदन कर
साथ चले
उस पार क्षितिज के
स्नेह-डोर में बंधे-बंधे ।

२. प्रश्न

विचारों की
परिधि के भीतर
फँसा हुआ
बेबस सा लाचार प्रश्न
उत्तर की तलाश में
तोड़ देना चाहता है
हर परिधि को
हर दीवार को
लाचार सिगरेट सा
क्षणिक जीवन का
बोझ ढोते हुए
अँगुलियों के बीच
सिसकती साँसों के बीच भी
अपने भविष्य की
संभावनाएं तलाशता है
प्रश्न
वैकल्पिक विचारों के बीच भी
ढूँढता है अपना अस्तित्त्व
उत्तर के नहीं मिलने पर
खुद को उत्तर के सांचे में ढालकर
विचारों के समुद्र में
लहर बनकर
किनारों से टकराता रहता है
अनवरत
पश्चात्ताप की अग्नि में
जलते हुए ।


-अनिल कुमार मिश्र, राँची, भारत ।