• २०८२ भाद्र ३१, मंगलवार

राग यमन

अंकिता शाम्भवी

अंकिता शाम्भवी

आसमान और चाँद मिलकर हो गए हैं मद्धम,
एक ज़रा-सा रेशमी कंपन‘
और चू पड़ा है चाँद मेरे होंठों पर,
यूँ सरगम गीले हो गए हैं
तुम्हें जाते हुए देखती हूँ,
बहुत दूर चले जा रहे हो,

अभी तो इक नूतन राग बनाना था हमें
सितार पर साथ थिरकनी थीं हमारी उँगलियाँ,
न जाने क्यों, मेरे सुर अब रूठ गए हैं मुझसे‘
कहीं स्मृतियों के प्रांगण में,
कोई गा रहा है राग यमन
(नि-रे-ग-रे-नि-रे-सा)
मैं याद नहीं करना चाहती ‘तीव्र म’‘
तुम दूर जा रहे हो मुझसे,
इक टीस उठती है कलेजे में,
और,
मैं भूल रही हूँ राग यमन‘।


अंकिता शाम्भवी