याम आयाम

भरी आंँखों से अब ये मंज़र
नहीं देखे जाते
हमसे अब ये खारे समुंदर
नहीं देखे जाते ।
हमसे मिलना है तो
खुश मिजाजी से मिलो
हम से ये नकाब चढ़े चेहरे
नहीं देखे जाते ।
अदब करना मेरे
बुजुर्गों की अमानत है
भरे बाज़ार में मुझसे
रिश्ते नहीं बेचे जाते ।
हाथ थामा है तो फिर
हालात से डरना कैसा
आन बचानी हो तो फिर
लश्कर नहीं देखे जाते ।
निवेदिता शुक्ला
इटावा, उत्तर प्रदेश, भारत