• २०८२ भाद्र २८, शनिबार

सिंधुतट की बालुका पर जब लिखा मैंने तुम्हारा नाम

रामधारी सिंह ‘दिनकर’

रामधारी सिंह ‘दिनकर’

सिंधुतट की बालुका पर जब लिखा मैंने तुम्हारा नाम
याद है, तुम हँस पड़ी थीं, क्या तमाशा है
लिख रहे हो इस तरह तन्मय
कि जैसे लिख रहे होओ शिला पर ।
मानती हूँ, यह मधुर अंकन अमरता पा सकेगा ।
वायु की क्या बात ? इसको सिंधु भी न मिटा सकेगा ।

और तब से नाम मैंने है लिखा ऐसे
कि, सचमुच, सिंधु की लहरें न उसको पाएँगी,
फूल में सौरभ, तुम्हारा नाम मेरे गीत में है ।
विश्व में यह गीत फैलेगा
अजन्मी पीढ़ियाँ सुख से
तुम्हारे नाम को दुहराएँगी ।


रामधारी सिंह ‘दिनकर’