• २०८२ आश्विन २३, बिहीबार

कश्मीरी लाल चावलाकि दस हाइकु

कश्मीरी लाल चावला

कश्मीरी लाल चावला

काँटे बीजे हैं
फिर काँटों उगेंगे
यह ना भूल

जली झोपड
नेता दर्द जिताते
बस झूठ का

ऊँची चोटियां
धूप फैलती जाती
रंगों के साथ

खेतों की सभा
कानों की पंचायत
किस का न्याय

एक नेता का
ईमानदार होना
कहाँ लिखा है

वाणी की चोट
गहरे घाव किए
मिटते नहीं

सत्य दर्पण
तोड़ता जो हुंकार
सत्य की जीत

पराली सड़ी
कितने ही मानव
मारती जाती

कैसा जमाना
कोख बीच बेटियाँ
मरती जाती

अंग्रेजी भाषा
अब लगने लगी
अपनी भाषा


कश्मीरी लाल चावला
संपादक अदबी माला, मुकतसर 152026 भारत