हासपरिहास की कोनी बात,
है बड़ी गम्भीर सोचबा की बात ।
मायड़ भाषा को उड़ावां खुद मजाक,
विदेशी भाषा की दिखावां खुब धाक ।
कि बात माय कम है ?
राख कै देखल्यो सब भाषावांकै साथ ।
मिली है थानै आप की निशानी,
करो ना खूद आप ही बर्बाद ।
हो जावैला अनजाण टाबर,
होसी फोड़ा घणा काल ।
पछताणो पड़ैलो फेर मल मल हात,
रह ना जावै धरी पन्नै इतिहास !
मत बर्बर होनै द्यो गर्विली सौगात,
समय रहतां चेत जावाँ आज ।
मतिना रुळावां ठोकराँ माय,
ससम्मान राखल्यां सिर माथ ।
बांधल्यां कसकर पल्लै गाँठ,
आज स्यूं ई नही इबार स्यूं ईं
बोलनी शुरु करां
आपणी ! आपकी ! सरस !
मिठी मायड़ भाषा मांय बात ।
(कवयित्री, स्वतंत्र लेखन, अध्यक्ष, नेपाल अग्रवाल महिला मंच, धरान, नेपाल)
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