• २०८२ भाद्र २८, शनिबार

प्रणय निवेदन

विजेता चौधरी

विजेता चौधरी

कतेक लाज आ भय करबैक दुनियासँ ?
प्रिये ! एक बेर विचारशून्य भऽ
हमर समीप तऽ आउ
कने निहारिली मन भरिकऽ
कऽ लेबऽ दिय प्रेम
छू लेबऽ दिय अधर
बान्हि लेबऽ दिय पाशमे
नहि रोकु,
बस आइ मातऽ दिय हमरा ।

जिनगी छिछलि रहल अछि शनै शनै
बालूसन हाथसँ
प्रतिपल
तें ई अन्तरंग प्रत्येक क्षणकेँ जीवऽ दिय
पीबऽ दिय ई रूपरस
एक बेर चूमऽ दिय आ झुमऽ दिय ।

निहारऽ दिय ई शुभ्रता
एना नहि टोकू, नहि रोकू
आउ ! अहुँ हमरेसँंग निराकार भऽ जाउ
महाशुन्यमे लिप्त होउ
तहने, प्रेमक अथाह आवेगकेँ बुझि सकबैक
आ बुझि सकबैक प्रेमक वोधित्वकेँ ।

बस, आब लोकलाजक भाभट समटू
आइ मन–प्राणकेँ आनन्दित होबऽ दियौ
निर्रलिप्त होवदियौ एक दोसरामे

देखियौ, दूर क्षितिजपर…
प्रथम सन्ध्याकालीन कौमार्य ओढने
चन्द्रमाक लालिमा
कतेक तेजश्वी छैक
मुदा रातुक अन्धकारयुक्त दोसल्ला ओढि
निमिष भरिमे
सम्पूर्ण वातावरण सियाह भऽ जेतैक ।

गति एहिना बदलैत छैक
समय कहाँ ठहरैत छैक केकरो लेल
तें आउ एहि क्षणमे भावनाकँे निकलऽ दियौ
बहऽ दियौ आशक्त आवेग–धाराकेँ
नहि रोकियौ,
सिनेहक पियासल धारकेँ
आइ तृप्त होबऽ दियौ ।

काल्हि हम नहि रहब
ई समय नहि रहतैक
प्रेमक एहने उदवेग सेहो नहि रहतैेक
समयक गति वायुपंखी छैक प्रिये !
आब देर जुनि करु
आउ, कने आर समिप आउ
आइ नेहक वर्खामे भीजऽ दिय
एकबेर चूमऽ दिय आ झुमऽ दिय ।।।

 


विजेता चौधरी


त्यो क्षण

Destiny