गुलाब के पौधे पर
ये जो खिलखिलाते, इठलाते
पत्ते हैं ना
इन्हें यूँ ही नहीं मिली है करीबी
खूबसूरत गुलाब की
इन्होंने सहे हैं
वक़्त के अंधाधुंध थपेड़े
कांटें चुभे हैं,
असहनीय दर्द हुआ है
कांटों ने छलनी भी किया है
इनके जिस्म को
फूलों को बचाया है
इन टूटते पत्तों ने
अपने शरीर पर अनवरत
ज़ख्म झेलकर,
गुलाबों ने सजा रखा है इन्हें
अपने पास
पूरे विश्वास से कि
जब भी अपनी ही डाली के काँटों का मन
मुझे घायल करने को,
मुझे खत्म करने को उद्यत होगा
तो ये पत्ते-
कुछ बूढ़े, कुछ युवा, कुछ शिशु
करेंगे मेरी रक्षा
अपने प्राणों की
आहुति देकर भी ।
अनिल कुमार मिश्र,
राँची, झारखंड,भारत