मेरी तकदीर पर वाहवाही लूटते हैं लोग
पर अपने घ्रर में ही घूमती परछाई बनती जा रही मैं
मैं ढूंढ रही पुरानी ख़ुशी पर मिलती हैं तोडती लहरें ख़ुद से सुगंध भी आती है एक
पर उस फूल का नाम भ्रम ही रहा मेरे लिए ।
आभा