• २०८१ फागुन १ बिहीबार

चुप रहना, बहुत कुछ कहना

 अरुण आदित्य

अरुण आदित्य

चुप हूँ इसका मतलब यह नहीं है
कि बोलने को कुछ है ही नहीं मेरे पास
या कि बोलने से लगता है डर
चुप हूँ कि किसके सामने गाऊँ या चिल्लाऊँ
किस तबेले में जाकर बीन बजाऊँ

जिन्हें नहीं सुनाई देती
पेड़ से पत्ते के टूटकर गिरने की आवाज़
जिनके कानों तक नहीं पहुंच पा रही
नदियों की डूबती लहरों से आती
बचाओ- बचाओ की कातर पुकार
जिन्हें नहीं चकित करती
अभी- अभी जन्मे गौरैया के बच्चे की चींची- चूँचूँ

भूख से बिलख रहे किसी बच्चे की आवाज़
जिनके हृदय को नहीं कर जाती तार- तार
उनके लिए क्या राग भैरव और क्या मेघ मल्हार

जहाँ सहमति में हो इतना शोर
कि असहमति में चिल्लाना
सबको मनोरंजक गाना लगे
वहाँ चुप रहना, बहुत कुछ कहना है ।


अरुण आदित्य