• २०८२ बैशाख ७ आइतबार

डा. बिशन सागरकी दो हिन्दी कविताएँ

डा. बिशन सागर

डा. बिशन सागर

१. नई पगडंडियाँ

इस गरमियों में
नहीं गया में
पहाड़ों में छुट्टियाँ मनाने

इस सर्दियों में
गुनगुनी धूप में बैठ
नहीं लिखी मैंने कोई कविता

इस बरसात में
नहीं भीगा मैं बिंदास, और
सूखा रहा मन भीतर तक

इस बसन्त
नहीं देखे मैंने
कोई इन्द्रधनुषी सपनें

इस साल
खोजी मैंने कुछ नई राहें
बनाई कुछ नई पगडंडियाँ

२. कविता

एक ख़ूबसूरत लम्बा रास्ता है
पुरातन से लेकर आधुनिक समय तककी
एक हसीन अदभुत यात्रा है
एक पवित्र प्यास है एक- दूसरे को जानने की

ख़ुशी और दर्द के बीच गुज़रता
एक हसीन सफ़र है कविता
कुछ अधूरे शब्द हैं, अनजाने रास्ते हैं
काम और आकस्मिक आवेग हैं
सरसरी नज़रे हैं, मुस्कराहटें हैं कविता

जादुई निर्जन टापू हैं, बादलों के ग़ुबार हैं
मोतियों सी चमकती सफ़ेद बर्फ़ है कविता
माँ की गर्भ-नाल से जुड़ी
अबोध शिशु की धड़कनें है कविता

कविता को कुछ और नहीं चाहिए बस
अँजुलि-भर जल, कुछ मिट्टी और मुट्ठी- भर आकाश
ये बनाए रखती है अपना वजूद
सदियों तक


डा.बिशन सागर, जालन्धर, पन्जाव, भारत
[email protected]