उन दिनों
जब घोषित किया जाता है
अस्पृश्य मुझे
एक अघोषित उल्लास
माँ को आश्वस्ति देता है
पूजती है माँ
पच्चीस दिन देव अपने
उन्हीं दिनों में
विमुख होता है देव मुझसे
वेदनाओं के उन सुस्त दिनों में
सृष्टि का संचरण
जाग्रत करता है देवत्व मुझमें
रक्तिम समय की चौथ में
प्रश्न कालजयी हो गये हैं
सब मौन हैं
पूर्वाग्रह युक्त उत्तर से
मेरी अस्पृश्यता
संरचनाओं का उत्स है
मैं माँ हूँ जन्म से
और ममता अस्पृश्य नहीं होती !!
अर्चना कुमारी