• २०८२ आश्विन ६, सोमबार

पुष्प बोगनबेलिया महके तुम्हारी याद देकर

आनन्द बल्लभ 'अमिय'

आनन्द बल्लभ 'अमिय'

पुष्प बोगनबेलिया महके तुम्हारी याद देकर ।
पुष्पिते ! सावन सुहाना आज महकाओ सुनो ना !

बह रही पवमानस तन अनुभूति पाकर झूमता है ।
चिद्विलासी मन मगर सुधियाँ निरंतर चूमता है ।
कुंज की हर त ? लता तन ताप से झुलसा रही है ।
और कलियाँ नित चिढ़ा संभाव्यतस् हुलसा रही हैं ।
प्राणिके ! आओस कहाँ हो ? यों न बहकाओ सुनो ना !
पुष्पिते ! सावन सुहाना आज  महकाओ सुनो ना !

सावनी जल, घनस घनन करके सदा बरसा रहे हैं ।
अवनि अम्बर हो अभय अनुराग में हरषा रहे हैं ।
कोयलें कूकें विटप पर और चातक भी अघाये ।
इस विरह की आग में केवल रहे हम तुम सताये ।
आत्मिके ! प्राकार तजकर प्रेम बरसाओ सुनो ना !
पुष्पिते ! सावन सुहाना आज महकाओ सुनो ना !

घिर रहे बादल, करे पागल, शुचे ! तुम क्यों न आये ?
दामिनी कड़की, नयन फड़की, शुचे ! तुम क्यों न आये ?
त्याग कर सब रूढियाँ आओ चलो बिषपान कर लें ।
प्रेम की मीरा सदाशिव बन प्रणय अवसान हर लें ।
राधिके ! माया रहित शुचि रास सरसाओ सुनो ना !
पुष्पिते ! सावन सुहाना आज महकाओ सुनो ना !

पुष्प बोगनबेलिया महके तुम्हारी याद देकर ।
पुष्पिते ! सावन सुहाना आज महकाओ सुनो ना !


आनन्द बल्लभ ‘अमिय’