समाचार

नारी तुम शापित हो !
अहिल्या की तरह
राजमहल से निष्कासित हो
सीता की मानिंद
अग्नि परीक्षा देने को विवश
रज:स्वला द्रौपदी की भांति
जो बाल खींच कर घसीट कर
लायी गयी राजसभा में
और जुए में दांव पर लगाई गयी
उर्मिला की भांति चौदह वर्ष महल में
पति की स्मृति में आंसू बहाती रही
ग़ुमशुदा-सी रहती
किसने जाना तुम्हारा दु:ख दर्द
बुद्ध ! तुम यशोधरा को रात्रि में
सोते छोड़ पुत्र मोह को त्याग चले गये
शांति की तलाश में
और मुड़ कर भी नहीं देखा
क्या तुम में साहस है वह सब करने का
परंतु अब तुम्हें मांग करनी होगी
अपने अधिकारों की
जिससे तुम रही वंचित
और अधिकार जब मांगने से न मिले
तो उन्हें छीन लेना बेहतर
उठो! दिखला दो जहान को
तुम अबला नहीं, सबला हो
अदम्य साहस की प्रतिमा हो
पा सकती हो मनचाहा लक्ष्य
और छू सकती हो
आकाश की बुलंदियां
डा. मुक्ता
गुरुग्राम,हरियाणा