• २०८१ फागुन ३ शनिवार

यदि दुनिया में मैं न होता

सरन घई

सरन घई

यदि दुनिया में मैं ना होता,
जो होना था वह ना होता,
जो होता सब गड़बड़ होता,
सब कुछ उबड़–खाबड़ होता ।
मेरे पैदा ना होने पर,
किसकी लोग बधाई देते,
नर्स डाक्टर भूखे मरते,
किसके नाम दवाई देते ?
स्कूल में बच्चे बैठे रहते,
मेरे बिना खेलते कैसे,
रहते वो दिनभर उदास से,
बिना ’सरन’ हम खेलें किस से ?
कालेज में हर लड़की कहती,
बिना ’सरन’ कॉलेज है सूना,
व्याकुल हृदय तड़प कर कहते,
कहां खिले हो ’सरन’ प्रसूना ?
खाली रहते विश्वविद्यालय,
एक भी लड़की वहां न जाती,
सूने और उदास क्षणों में,
कहो किसे वो ’सरन’ बुलाती ?
मेरी नौकरी के पैसे सब
बांट दिये जाते औरों में,
कितना बुरा मुझे लगता,
मेरा धन बंटता चोरों में ।
मेरी पत्नी की शादी तब,
कर दी जाती किसी ओर से,
हाथ से बीवी जाती लख कर,
मैं भी रोता जोर–जोर से ।
बीवी तो बीवी मेरे बच्चे भी
किसी और के होते,
कर–कर के वो याद मुझे
किस तरहा जोर–जोर से रोते ।
सब कुछ गलत–सलत होता
मेरी प्रापर्टी भी बंट जाती,
भाई–बहन मिलकर खा जाते,
मेरे हाथ तसल्ली आती ।
राष्ट्रपति, ना प्रधानमंत्री,
कुछ भी तो मैं बन ना पाता,
मेरे नाम के आगे सोचो
भारत रत्न नहीं लग पाता ।
अंत समय मेरा जब आता
अपनी अर्थी स्वयं उठाता
खुद ही खुद को अग्नि देकर,
चिर समाधि में मैं सो जाता ।
यही सत्य है जीवन का,
सोचो ना आते तुम भी जग में,
ऐसा खास किया क्या आकर
याद तुम्हारी हो हर युग में ।
आए हो तो दुनिया में
ऐसा कर जाओ याद करें सब,
वरना तो हर रोज ’सरन’
कब पैदा होते, मर जाते कब ।


सरन घई, संस्थापक- अध्यक्ष, विश्व हिंदी संस्थान, कनाडा