• २०८१ फागुन ३ शनिवार

धुल

एस.आर. ढकाल

एस.आर. ढकाल

धुलने पुछा
आपकी बीबी तिर्थाटनको चली है
मैं आ जाउं
क्या बैठुँ
मैंने बोला मत आओ
वो रुठ गइ
चलने के लिए उठ गइ
मैनें शाबासी दि
मैं घरमें कुण्डली मारके निकल गया
साम देरको घर आया
देखा धुल तो सोफेमें बैठी है
कुण्डलीमें जमके ठाठ मार रही है
बेडरुममें सो रही है
मैने पुछा चलने को कहा था
फिर भी क्यूँ अन्दर आई
उसका जवाब ऐसा था
रास्तेमें जितने भी सवार है
सडकमें सोने नहीं देते
खोमचेवाले झाड्ते है
कोही पानी नहीँ पिलाते है
ठेकेदार मसीनसे उडाते हैं
झाडुवालेतो क्या बोलें
फूँक फूँकके भगाते हैं
ओ महाशय मैं कहॉं जाउ
कोही मुझे पिलाते नहीँ
कोही मुझे खिलाते नही
तब मैं कहॉं जाउ
एक तुम ही हो
न झाड्ते न उड़ान भराते हो
वो भी तेरी बीबी तिर्थाटनको है
इसलिए यहॉं न ऑंउ तो
जाउँ कहॉं जॉंउ
मैंने कहा हे ! धुल
मैंने तो प्यारसे रखा है
बीबी आ के भगाएगी
तेरी नींद खराब हो जाएगी
उस दिन तुमको जाना है
तब तक चुपचाप सो जा रे
बेचारा गरीब धुल


एस.आर. ढकाल