• २०८१ भाद्र २५ मङ्गलबार

सबका घर संसार सजा है

सरिता पंथी

सरिता पंथी

सबका घर संसार सजा है
किसके दिल में कौन बसा है
देह किसी के साथ खड़ी है
अन्तर्मन में कोई पड़ा है
मुश्किल है अब ये कहने में
कौन पराया कौन सगा है
बड़े बड़ाई कर के छोटे
छोटा सबके साथ बड़ा है
हँसती आँखों से मत पूछो
चूप रह रहकर क्या तो सहा है
तन के बंध जाने से ‘सरिता’
कोई कहाँ किसी का हुआ है ।


सरिता पंथी, महेन्द्रनगर, नेपाल