• २०८१ भाद्र २५ मङ्गलबार

प्रेम का अंकुरण

रेनू शब्दमुखर

रेनू शब्दमुखर

सुनो !
मेरे बंजर मन पर
तुमने कुछ बीज प्रेम के
अनजाने ही रोप दिए थे
और संवेदना जल से
उसे सिक्त करते रहे
आज मैंने देखा
उस सूखे बंजर मन में
अब प्रेम का अंकुरण हो

छोटे छोटे नव पल्लव
विकसित होने लगे है
और उन पर प्यार की कलियाँ
पुष्पित हो महकने भी लगी है
सुनो बस इतना करना
इस अंकुरित पल्लव को
स्नेहसिक्त कर महके हुए पुष्पों में
नव ऊर्जा और नव ऊष्मा
की धूप लगा के
विश्वास की खाद से
सृजित आभाकी सुखानुभूति से
प्रेम संसार को आलोकित कर

अंकुरण के अस्तित्व को गति देना
और मैं कविता बनकर
तुम्हारे अंतस को
प्रेम से प्लावित कर
सरस शेफालिका के फूल सी
तुममें खिलती रहूंगी ।


रेनू शब्दमुखर, जयपुर राजस्थान