भगवान श्री कृष्ण और राधा का संबंध आमतौर पर पति–पत्नी का नहीं बल्कि प्रेमी–प्रेमिका के रूप में जाना जाता है । हालांकि ब्रह्मवैवर्त पुराण में दोनों के विवाह की कथा भी मिलती है और विवाह स्थल का जिक्र भी किया गया है । इसके बाद भी भगवान श्री कृष्ण के साथ कहीं भी उनकी पत्नियों की तस्वीर या मूर्ति नहीं मिलती है । हर जगह श्री कृष्ण के साथ राधा ही नजर आती हैं । इसकी वजह यह है कि १६१०८ पत्नियों पर राधा का प्रेम भारी था । यह बात भगवान श्री कृष्ण ने खुद रुक्मिणी को बताई थी ।
इस नाम की महिमा अपरंपार है। श्री कृष्ण स्वयं कहते है– जिस समय मैं किसी के मुख से ‘रा’ सुनता हूं, उसे मैं अपना भक्ति प्रेम प्रदान करता हूं और धा शब्द के उच्चारण करनें पर तो मैं राधा नाम सुनने के लोभ से उसके पीछे चल देता हूं । राधा कृष्ण की भक्ति का कालान्तर में निरन्तर विस्तार हुआ । निम्बार्क, वल्लभ, राधावल्लभ, और सखी समुदाय ने इसे पुष्ट किया । कृष्ण के साथ श्री राधा सर्वोच्च देवी रूप में विराजमान् है। कृष्ण जगत् को मोहते हैं और राधा कृष्ण को। ज्ञद्दवीं शती में जयदेवजी के गीत गोविन्द रचना से सम्पूर्ण भारत में कृष्ण और राधा के आध्यात्मिक प्रेम संबंध का जन–जन में प्रचार हुआ ।
आराधिका में आ को हटाने से राधिका बनता है । इसी आराधिका का वर्णन महाभारत या श्रीमद्भागवत में प्राप्त है और श्री राधा नाम का उल्लेख नहीं आता। भागवत में श्रीराधा का स्पष्ट नाम का उल्लेख न होने के कारण एक कथा यह भी आती है कि शुकदेव जी को साक्षात् श्रीकृष्ण से मिलाने वाली राधा है और शुकदेव जी उन्हें अपना गुरु मानते हैं । कहते हैं कि भागवत के रचयिता शुकदेव जी राधाजी के पास शुक रूप में रहकर राधा–राधा का नाम जपते थे । एक दिन राधाजी ने उनसे कहा कि हे शुक ! तुम अब राधा के स्थान पर श्रीकृष्ण ! श्रीकृष्ण ! का जाप किया करो । उसी समय श्रीकृष्ण आ गए। राधा ने यह कह कर कि यह शुक बहुत ही मीठे स्वर में बोलता है, उसे कृष्ण के हाथ सौंप दिया। अर्थात् उन्हें ब्रह्म का साक्षात्कार करा दिया। इस प्रकार श्रीराधा शुकदेव जी की गुरु हैं और वे गुरु का नाम कैसे ले सकते थे ?
राधा ही कृष्ण और कृष्ण ही राधा क्यों है ?
राधा कृष्णा कोई दो नहीं थे । दुनिया की नज़रो में वो दो थे, लेकिन राधा रानी जी के नज़रो में सिर्फ कृष्ण थे और कृष्ण जी की नज़रो में सिर्फ राधा जी थी । प्रेम सिर्फ पाने का नाम नहीं ना ही प्रेम न मिलने से खो जाता है सच्चा प्रेम अनमोल होता है । प्रेम में शब्दों का खेल नहीं होता है यहाँ तो आँखों से सब बया कर दिया जाता है । सच्चे प्रेम में तो उनकी यादें में छू जाये तो पता चल जाता है की वो आपको याद कर रहे है ।
श्री कृष्ण जी खुद कहते थे मैं राधा सरोवर प्रेम का सिर्फ एक हंस हूँ ।
हे कृष्णा,
जब आये आप तकदीर बनती चली गयी ।
हर चीज अपने से निखरती चली गयी ।
गुजरे आप जिस भी रह गुजर ।
खुशबु आपकी फिजाओं मे बिखरती चली गयी ।
श्री जी का आगमनः
यह सब जानते है, भगवान कृष्ण ने राधा जी को पृथ्वी पर जन्म लेने का आग्रह किया। यह भादो (सितंबर के महीने में), शुक्ल पक्ष की अष्टमी, अनुराधा नक्षत्र का समय था और समय १२ बजे जब राधा रानी इस दुनिया में प्रकट हुई ।
रावलः
श्री राधा जी का जन्मस्थान रावल है, मथुरा शहर से लगभग १० किलोमीटर दूर एक छोटा गांव है। ऐसा कहा जाता है कि एक दिन बृषभानु जी एक नदी में स्नान कर रहे था, तभी उन्होंने एक कमल देखा जो कि हजारों पंखुडि़यों वाला था और वह सूर्य के प्रकाश में सुनहरा कमल जैसा दिखता था और जब वह करीब आ गया, तो उन्होंने उस फूल के अंदर एक छोटी बच्ची को देखा और उस बच्ची को उन्होंने भगवान का आशीर्वाद समझ कर ले लिया और उसे अपनी बेटी के रूप में घर ले आये ।
कृष्ण के लिए दिव्य प्रेमः
श्री राधा जी ने अपनी आँखें नहीं खोलीं, जब तक कि वह भगवान कृष्ण के सुंदर चेहरे को नहीं देखा। वृषभानु और उनकी पत्नी बहुत परेशान थे उन्हें लगा कि लड़की अंधी थी । ग्यारह महीनों के बाद, जब अपने परिवार के साथ वृषभानू नंदबाबा को देखने के लिए गोकुल गए तो श्री राधा जी ने अपनी आंखें पहली बार खोली वो भी तब, जब नंदबाबा बाल गोपाल श्री कृष्ण को उनके सामने लाये । अपने स्वामी आकर्षक चेहरे को देखने के लिए राधा रानी ने अपनी आंखें खोल दीं। वह पहली बार अपनी आँखें खोलने पर श्री कृष्ण जी का चेहरा देखना चाहती थी और यही कारण था कि उन्होंने अब तक अपनी आंखें नहीं खोली थी।
गह्वर वन जहा राधा कृष्णा पहली बार अकेले मिलेः
बरसाने से कुछ किलोमीटर दूर गह्वर वन है यही वो जगह है जहाँ राधा कृष्णा पहली बार अकेले मिले। जहाँ उन्होंने कुछ समय साथ में व्यतीत किया। जहाँ श्री कृष्ण ने राधा रानी के बालों को फूलो से सजाया था ।
वृंदावन और उनका प्यारः
उनका प्रेम वृंदावन की जमीन पर उग आया । माना जाता है कि ब्रह्माण्ड में सबसे अधिक धन्य भूमि है । उन्होंने यमुना के तट पर महा–रास लीला किया जो को युगों–युगों तक नहीं भुलाया जा सकता ये अटूट भक्ति (प्रेम ) का संगम था। लेकिन तब वह समय भी आ गया जब शाप के कारण कृष्णा को राधा जी से अलग होना पड़ा। उनसे दूर जाना पड़ा। लेकिन वो कहते है ना कि, जिनकी रूह एक दूसरे के रूह में समायी होती है वो अलग कहाँ होते हैं। कंस को मारने के लिए श्री कृष्णा को मथुरा जाना पड़ा। जाने से पहले, श्री कृष्णा जी ने ,श्री राधा जी से अपना वचन लिया कि वो उनकी याद में कभी आँसू नहीं बहायेंगी ।
श्री राधा जी ने वादा किया कि वो नहीं रोयेंगी और आँसू नहीं बहाएंगी । कृष्ण ने उससे कहा कि उनका प्यार बिना शर्त का है और हमेशा रहेगा। मैं समय के अंत तक तुम्हारा ऋणी बना रहूँगा और वो हमेशा उनके साथ देखी जाएँगी। मेरे नाम से पहले हर कोई तुम्हारा नाम लेगा। और हम आज देख सकते हैं कि वृंदावन में लोग या ब्रजवासी कहते हैं, राधे राधे कहो चले आएंगे कृष्णा ।
निस्वार्थ प्रेम की निशानी वृन्दावन धाम है जहाँ सिर्फ राधे ही राधे नाम है । आज वृन्दावन में हर तरफ राधे राधे है। यहां तक कि रिक्शा वाला रास्ता मांगने के लिए रास्ते भी सिर्फ राधे राधे नाम का प्रयोग करते है। वृंदावन में हर घर या वृक्ष पे श्री राधा का नाम लिखा गया है । श्री राधा जी का भक्ति (प्रेम ) और दर्द ऐसा था कि कृष्ण ने उसे एक वरदान दिया कि उनका नाम श्री कृष्णा जी से पहले लिया जाएगा । सच्चे प्रेम को कोई कहा कैद कर पाया सच्चा प्रेम तो उस फूलो की खुशबू की तरह है जिसे छुआ नहीं जा सकता सिर्फ महसूस किया जा सकता है ।जिसने महसूस कर लिया उसका जीवन भी प्रेम भरी खुशबु से महकने लगेगा ।
(डा. श्वेता दीप्ति त्रिभुवन विश्वविद्यालय में हिन्दी साहित्य की उप-प्राध्यापक हैँ)
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