कविता

झुलासाता जेठ मास
शरद चाँदनी उदास
सिसकी भरते सावनका
अंतर्घट रीत गया
एक बरस बीत गया
सीकचों मे सिमटा जग
किंतु विकल प्राण विहग
धरती से अम्बर तक
गूंज मुक्ति गीत गया
एक बरस बीत गया
पथ निहारते नयन
गिनते दिन पल छिन
लौट कभी आएगा
मनका जो मीत गया
एक बरस बीत गया
अटलबिहारी वाजपेयी