English Poem

अब वो रौब नहीं जमाता
वो दोस्त बन जाता है अब
हमारी खुशी से नहीं होता है उसे अब दुख
हमारी हंसी से खुश होता है अब
उसे नहीं चाहिए अब बस हमारा शरीर
वो रूह में भी उतरता है अब
वो नहीं समझता है अब हमें चरणों की दासी
कंधे से कंधा मिलाकर चलता है अब
बस गुस्सा नहीं करता है वो
गुस्से को सहता भी है अब
थक कर चाहे कितना भी चूर क्यों न हो
रसोई में पसीने से लथ पथ स्त्री की भी पीड़ा
समझता है अब
स्त्री की भी यौन इच्छा का करता है वो सम्मान
पौरुष का दंभ नहीं दिखाता है अब
सिर्फ अपनी सफलता पर नहीं होता है वो गर्वित
स्त्री की भी सफलता पर दंभ भरता है अब
बस कहने के लिए नहीं बोलता
“ लेडिज फस्ट “
खुशी खुशी स्त्री को आगे करता है अब
हाँ बदल गया है इक्कीसवीं सदी का पुरुष
स्त्री को देकर सम्मान
स्त्रीत्व का मान रखता है अब
कठोरता , घमंड को करके त्याग
कभी दोस्त तो कभी-कभी थोड़ा स्त्री बन जाता है अब
पुरुष अब बन गया है पुरुष
नहीं समझता खुद को रब ।
रुबी प्रसाद, सिलीगुड़ी पश्चिम बंगाल