वसन्तवेला

भेजता हूँ ऐ प्रेमी !
प्रेम का सन्देश तुमको
कर कृपा अपना ही लेना ।
तुम रहे ख्वाबों में हरदम
और दिल के पास भी है
वीथियाँ अनजान हैँ सब
पर कदम सब जानते हैं
जब मिले खुलकर हँसे
भूल कर सारे गिले
रह गयीं बाँहें बिलखती
पर कवित्त में तुम रहे नित
बोल कैसे भूल जाऊँ
चाह तो अब भी प्रबल है
खेल अद्भुत रच न देना
जानकर बिसरा न देना
आत्म सन्तुष्टि सदा ही
दे रही अब भी दिलासा
होगा मिलन बस धैर्य रखना
चाह को मत छोड देना
प्रेम को मत भूल जाना ।
साभार: चाहतों के साये में
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(चौधरी विशिष्ट साहित्यकार हैं)