• २०८० असोज १३ शनिवार

नियति को किसने देखा है

पुष्पा मिश्रा

पुष्पा मिश्रा

वक्त को कभी जाया न कर
यूँ बे वक्त कहीं जाया न कर
तेरी मोटी इमारत उम्मीद जगाती है
यूँ उम्मीद पर मातम मनाया न कर
मासूम सा चेहरा, तेज लिए चेहरे पर
तंज कसते थे जमाने पर दौड़ में मैं आगे हूँ

क्यूँ चितवन शांत है
कदम क्यूँ परेशान है
पथ क्या सचमुच मुश्किल है
अकेला तू ही नहीं कितने ही इसमें शामिल हैं
लगने लगेंगे कयास कई
होगा न जवाब कोई
परिंदा वक्त से आगे न निकल जाये
नियति को किसने देखा है
क्या तय है क्या लिखा है
परिजन कोई न साथ होगा
तेरा साहस ही तेरे पास होगा
लक्ष्य भेद होके निष्पक्ष
उठ अर्जुन और राम मेरे ।


पुष्पा मिश्रा, भारत