कुछ “लोग’’ हैं
कुछ “रिश्ते’’ हैं
मैंने दोनों को
अलग- अलग ढूँढा
सभी रिश्तों में “लोग’’ मिले
कुछ ऐसे लोग
जो जुबा से अपने थे
परायेपन और दुश्मनी का
अहसास भी
उन्होंने ही कराया
मनविह्वलहुआ
उद्विग्नहुआ
इन रिश्तों से
और
“लोगों’’ में, जिन्हें कभी
अपना नहीं समझा
उनमें मिले
कुछ नायाब रिश्ते
कुछ दुर्लभ हीरे
मिलते ही रहे अनवरत
लोगों में रिश्ते,
मिलती रही संवेदनशीलता,
करुणा, अपनेपन की उष्णता
लोगों में,
और
खून के खूनी रिश्ते
हत्या हेतु मुहूर्त्त
ढूँढते रहे
पल, प्रतिपल
छलते ही रहे
क्षण, प्रतिक्षण
और
फीके पड़ते गये
टूटते गये
सूखते गये
खून के रिश्ते
हाँ वही
रक्त पिपासु
खूनी रिश्ते।
अनिलकुमार मिश्र, राँची, झारखंड, भारत
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