• २०८१ मंसिर १७ सोमबार

मेरा घर

बसन्त चौधरी

बसन्त चौधरी

अविचल खडा हुआ
मेरा घर
अपनी स्नेह भर
नजरें जमाये रहता है वो
हर आने–जाने वालों पर
चाहे वह कोई घर का हो
या हो मेहमान या कोई अजनबी
मजाल निगरानी में
कोई कोताही हो जाये ।

वैसे ही सजग है मेरा घर
जैसे कोई परिवार का वयोवृद्ध
पिताजी या दादाजी से भी ज्यादा सजग
हाँ! माँ की अलग बात है,
माँ जगती रहती है सबके लौट आने तक
किन्तु वह भी आश्वस्त हो कर
कुछ सुस्ताने लग जाती है

किन्तु नहीं सोता कभी मेरा घर
बाट देखता है आज भी
घर के हर सदस्य की
मेरी भी राह तक रहा है
और एक मैं, जो उसे भूल बैठा हूँ
शायद
नहींँ ! याद है कुछ धुँधली सी
क्योंकि मैं बहुत छोटा था
उससे बिछडते समय

अब जर्जर हो गया है मेरा घर
भूला–बिसरा या टूटता घर
मेरी ही नहीं सभी परिजनों की
यादों को सँजोए खडा
बाट जोहता
खंडहर बनता हमारा प्यारा घर ।

साभार: अनेक पल और मैं


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(चौधरी विशिष्ट साहित्यकार हैं ।)