समस्याओं की कटीली झाडियों में
उलझने के बाद भी,
साहसपूर्वक जूझते वक्त
अचानक जब मेरी आँखों की नमी थम जाती है
तब ऐसा लगता है कि
आशीर्वाद स्वरूप आपके वरद हाथ
मेरे सिर पर है ।
एस क्षण, वाह ! उस क्षण
मुकुटधारी व्यक्तित्व से कम नहीं हूँ मैं !
ऐसी गौरवमय अनुभूति होती है मुझे
मेरे पिताजी !
मैं साधिकार उद्घोष करता हूँ-
कि आप ही हैं वह सगरमाथा
जिनके पांव पाताल को भी नाप चुके हैं ।
आपके कंधों पर
दिख रहा जो श्रम युक्त गठरी का काला निशान है
वही है आपके पौरख की प्राप्ति,
परिश्रम के नाम ।
संसार के सामने बडी ही विनम्रता के साथ
पेश करता हूँ अपना परिचय ।
पिताजी ! मैं उसी विपुल श्रम की कनिका तुल्य
बून्द हूँ
पसीने का एक अभिन्न क्रम हूँ ।
साभार: चाहतों के साये में
[email protected]
(चौधरी विशिष्ट साहित्यकार हैं ।)