• २०८० असोज ७ आइतबार

झूलाझुलेँ हे सखी

सविता वर्मा

सविता वर्मा

झूलाझुलेँ हे सखी
याद बाबुल का अंगना
आने लगा !
वो अम्बुआ की डाली पे
पड़ा झूला !
सज–धज सखियों का याद
झूलना आने लगा ।।

गोरे–गोरे हाथोंमककं भरी–भरी
चूडि़यां वो हरी–हरी..
बन बिंदियां चाँद का
याद मस्तक पर चमकना
आने लगा ।।

गाती अम्मा, ताई, चाची सभी
मगन मस्ती होकर कजरी सखी
सिर से चुनरी का याद सरकना
आने लगा ।।

छोड़ घर बाबुल का…
आयी साजन के घर…
संदेशा बैठ मुँडेरी पे कागा देने लगा…
लेके आया सिँधारा प्यारा भाई सखी
नीर खुशियों का आँखों से
बरसने लगा ।।

बान्धू राखी कलाई पे जुग– जुग जिये
मेरा प्यारा माँ का जाया
दिलपल–पल बलायें
लेने लगा ।।


सविता वर्मा
कवयित्री, स्वतंत्र लेखन, मुजफ्फरनगर, उत्तरप्रदेश, भारत