सचमुच के आये को
कौन खोले द्वार !
हाथ अवश
नैन मुँदे
हिये दिये
पाँवड़े पसार !
कौन खोले द्वार !
तुम्हीं लो सहास खोल
तुम्हारे दो अनबोल बोल
गूँज उठे थर थर अन्तर में
सहमे साँस
लुटे सब, घाट-बाट,
देह-गेह
चौखटे-किवार !
मीरा सौ बार बिकी है
गिरधर ! बेमोल !
सचमुच के आये को
कौन खोले द्वार !
साभार : कविताकोश