बोलो, मौन क्यों हो
खामोशी को परे रखबर
अपने अन्तरमन को खोलो
बहुत कठिन है ध्येय छुपाना,
व्यक्त करो व्यथा निधि की ।
क्योंकि
दिल- दरिया के भाव सहज ही
नजरों के आँगन में आकर
सारी बातें बता चुके हैंं
शब्दों ने नहीं, भावों ने
राज खोल दिये हैं
बेशक
पलकों पर है ताला
किन्तु
नेह- नीर बह निकली है
आँखों की कोर से
पावन गंगा बन ।
क्या अब भी आवश्यकता है
शब्द- जाल के आडम्बर की
या
किसी अन्य माध्यम की ?
बस काफी है तुम्हारा
मौन समर्थन !!
अव्यक्त मौन सम्प्रेषण !!!
साभार: अनेक पल और मैं
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(चौधरी विशिष्ट साहित्यकार हैं ।)