उमड़ते घुमड़ते बादलभी
बहुत कुछ छुपा कर रखतें हैं
काले मेघ देख हम यही समझते हैं
होने वाली है तेज बारिश
मगर यहाँ तक कहाँ सोच पाते हैं हम
किसी विरहण की विरहा भीगा रही होगी बदली
ये बदली समझती है विरहण की वेदना को
जब जब बादल बरसे समझो किसी
की विरहा को दर्शा रहा है
वो जो झमझम करती होती है न बारिश
किसीकी आँखों के आँसू झर रहें होते हैं
और हम समझते हैं कि
बारिश का काम है बरसना
सो वो बरस रही है
हाँ उमड़ते घुमड़ते बादलभी
बहुत कुछ छुपाकर रखते हैं
कंचना झा, काठमान्डू नेपाल