• २०८१ भाद्र २५ मङ्गलबार

प्रदीप बहराइचीके दो गीत

प्रदीप बहराइची

प्रदीप बहराइची

एक
गुत्थियां उलझी रहेंगी, यदि समय तुम मौन होगे ।
वाह्यमंडल है सुवासित
शून्य है अंतस में खुशबू
वेदना ही वेदना है
वेदनाका मोल बस तू
कामनाएं नित मरेंगी, यदि समय तुम मौन होगे ।

कब कसम खाई न हमने,
हाथ कब हमने न जोड़े
उसने ली थीं फेर नज़रें
उसने ही संबंध तोड़े ।
ये व्यथाएं चिर बढ़ेंगी, यदि समय तुम मौन होगे ।

तन अचेतन हो रहा है
हर जतन कर हार बैठा
हां चकित हूं घाव पर ये
नेहका प्रतिकार कैसा
पीरनद कलकल बहेंगी, यदि समय तुम मौन होगे ।

दो
सभ्यताको आंकना मत तुम कभी अखबार पढ़कर ।

ओसकी बूंदों से आखिर
तृप्ति कैसे हो सकेगी
धार जलकी दूर हो तो
प्यास फिर कैसे बुझेगी
यंत्रणाको आंकना मत तुम कभी अख़बार पढ़कर ।

नित्य ढहते ही रहे हैं
रेत निर्मित सब घरौंदे ।
मूल्य हैं भयभीत अब तो
बेवजह जाएं नरौं दे
मान्यताको आंकना मत तुम कभी अखबार पढ़कर ।

नित हनन होते रहेंगे
मान के प्रतिमान के भी
ओट पर्दोंकी लिए कुछ
शत्रु होंगे प्राण के भी
वंदनाको आंकना मत तुम कभी अखबार पढ़कर ।

सम्प्रति- जनपद बहराइच के परिषदीय विद्यालय में शिक्षकके रूपमें कार्यरत ।
लेखनविधा – गीत, कविता, दोहा मुक्तक व ग़ज़ल ।
प्रकाशित कृति – ‘आजा ओ मधुमास में’ (काव्य संग्रह) आकृति प्रकाशन, दिल्ली, ‘चूमा है चांदको’ (कविता संग्रह) अंजुमन प्रकाशन, प्रयागराज