जख्म़ देने के बहाने, ढ़ूढ़ता हर बार है,
दर्द देना शौक उसका, आदतन लाचार है ।
गैर की बस्ती सुहानी, कद्र करता शौक से,
हम अगर माँगें सिफारिश, डाँटता दोचार है ।
हरतरफ भरमे हमेशा, हम उसे दुश्मन लगें,
जिंदगी के फलसफ़ा में, हम बने बेकार है ।
मासूमों सा बात करके, टालता हर बात को
हरकतें ऐसी करे मन तो हुआ बेज़ार है ।
मर्ज गहरा है फिज़ा में, बाग सहरा बन गया
फूल नाज़ुक हर गली मेरे लिए औज़ार है ।
अनीता शाह, वीरगंज