• २०८१ पौष २९ सोमबार

धड्कन

बसन्त चौधरी

बसन्त चौधरी

मेरी साँसे
मचल रही हैं
उलझ रही हैं
मैं उन उलझी साँसों में ही
तेरी खुशबू पा रहा हूँ
और समेट रहा हूँ दिल में ।

देखता हूँ यादों के आईने में
तुम आज भी नहीं बदली हो
तुम्हारी मुस्कान,
कदमों की आहट,
साँसो की असहज रफतार
जो निरन्तर
मुझे स्पर्श करती रहती हैं
जिन्हें मैं महसूस करता हूँ ।

मेरी धड्कन
आश्वस्त करती हैं मुझे
दिगन्त में कहीं भी रहो तुम
प्रसन्न ही रहोगी ।

मैं आँखें बन्द करके भी
अनुभव कर लेता हूँ
तुम्हारे सुख–दुख, ताप–तपिश
क्योंकि, तुम
मेरी धड्कन में नहीं
बल्कि तुम
मेरी धड्कन ही हो ।

साभार: अनेक पल और मैं


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(चौधरी विशिष्ट साहित्यकार हैं ।)