इस गरमियों में
नहीं गया में
पहाड़ों में छुट्टियाँ मनाने
इस सर्दियों में
गुनगुनी धूप में बैठ
नहीं लिखी मैंने कोई कविता
इस बरसात में
नहीं भीगा मैं बिंदास, और
सूखा रहा मन भीतर तक
इस बसन्त
नहीं देखे मैंने
कोई इन्द्रधनुषी सपनें
इस साल
खोजी मैंने कुछ नई राहें
बनाई कुछ नई पगडंडियाँ
डॉ बिशन सागर, जालन्धर, पन्जाव, भारत
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