• २०८० मंसिर २० बुधबार

अपना रिश्ता है

ममता शर्मा “अंचल”

ममता शर्मा “अंचल”

जल से जलचर थल से थलचर जैसा अपना रिश्ता है
दूर पास का भेद नहीं है
दूरी का भी खेद नहीं है
प्रीत पुस्तिका के सम कोई
ग्रंथ नहीं है वेद नही है
नभ से नभचर, वन से वनचर जैसा अपना रिश्ता है

मत पूछो इसकी परिभाषा
लेकिन भूलो मत अभिलाषा
यह तो आशाकी धरती है
इसमें पलती नहीं निराशा
प्रिय से प्रियवर, रुचि से रुचिकर जैसा अपना रिश्ता है

इसमें होता नहीं विराम
और नहीं तिल भर विश्राम
सोच न अंचल चलती जा
नित ले इस रिश्ते का नाम
सुख से सुखकर, प्रण से प्रणधर जैसा अपना रिश्ता है ।


ममता शर्मा “अंचल”, अलवर (राजस्थान)