कहानी–हिन्दी

मैं चिडि़या नीले अपरिमित गगन की
कभी न कभी पिंजरबन्द न कर पाओगे
लाख कोशिशों के बाद भी
अगर कतर लिए तुमने पंख हमारे
तो बोलो मेरे हौसलों की
उड़ान को कैसे रोक पाओगे ?
ये उड़ान नहीं है कागजी पतँगों की
जो मेरी डोर को तोड़ कर तुम
अपने विजय का पताका लहराओगे
ये उड़ान तो है मेरे सपनों की
बोदो उस पर पहरे कैसे लगाओगे ?
मैं चिडि़या नीले अपरिमित गगन की ।
खुशबु बनकर गुलशन में महकूँगी
बाददल बन कर पर्वतों को चूमूँगी
अरे कभी न रोक पाओगे तुम
मुझको ऐ दुनिया वालों
क्योंकि मैं अपने पंदखों से नहीं
अपने हौसलों से उड़ूँगी ।
मैं चिडि़या नीले अपरिमित गगन की
पूजा बहार, कवयित्री, स्वतंत्र लेखन (दुहवी, बिराटनगर, नेपाल)
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