• २०८१ असोज २४ बिहीबार

कवि ज्योतिकुमारी झाका दुई मैथली भाषी कविता

ज्योतिकुमारी झा

ज्योतिकुमारी झा

१. दहेज

मिथिला नगरीमे भरहल शोर
दहेज नै लेब सबके जोर
टेढ आँंगुर सँनिका लैत घि देखु
रूप परिवर्तन दहेजके बुझु

वरके बाबु कहैछै थ नै चाहि टका
भार उठालिय ,पच्चीस भइर सोन आ बस्त्र सबटा
ध्यान नै दिय छाता आ जुत्ता
धियाके छोटे छिन दियचाईर चक्का
नैहर जँएति, शोभत अहिँके दरबज्जा
मनोरथ एतबे पुरादिय
दहेज नै, अपन धियाके सबकिछ दिय

समतुल्य योग्य बनाक धियाके पठायब
सोचलौं समाज सँ दहेज प्रथा हटायब
दहेजके रूप परिवर्तन भगेल
नगदि छोइड सामानके जामाना भेल

धिया पढल, योग्यके दहेज नैलेब सुनलौं
घुमाफिराक सबकिछ लैइत देखलौं
अडाक माँगैछैत त तिलक गैइन दैइतौं
लोहछैत मन बाजैत कनिया गतके देखलौं

देखलौं किछ कनियागत जे तिरस्कार करैइत
आभाष भेल, धियाके उमेर बढैत
सोचमे कनियागत, धियाके बिवाहलेल
दहेज प्रथा चरम सिमापर गेल ।।

२.स्तब्ध मन

स्तब्ध मनमे आइगफुइक रहल छि
धियाके अन्तय देखि पश्चाताप करहल छि
रूप परिवर्तन करु सब आब
सीता नै काली बइन जाउ
मार जे आयतक्यो
सबके भक्षण केने जाउ

कतबो पढायब, बुझायब
नाटक करत परिवर्तन के
बेटिके सम्मान करब कहत
सोच रहत दमन शोषण ओकर जीबन के
हरदम अपग्रहमे जीबन
कतकत अपन लोक सुरक्षा लेल ठार रहत
पत्थर हृदय, लोह शरीर बइन सबके सामना कर परत

त्यागी, दानी बड बनलौं
आब संहारकारी बनहे परत
चाहे सामना कर परत बलत्कारी सँ
यागर्दन दबौना, आइ गलगौना सँ
क्रान्तिकारी योद्धा बइन
लडब अपन खौललखुन सँ
मइरो जायब त नै कहे क्यो
कायर आ लाचार छल
गर्व स सब कहि सकय
बेटि लइडक शहिद बनल ।।।


ज्योतिकुमारी झा, मिथिला
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