रम्बास् कविता

पावन सा नाता जो न्यारा,
होता है दो मित्रों का ।
बिन स्वार्थ के प्रीत निभाएं,
ये निचोड़ सब रिश्तों का ।
पथ भ्रस्ट करे वह मित्र नही ,
उससे तुम रहना दूर सदा ।
खण्डित यदि विश्वास करे,
तो जीवित जाग्रत सी विपदा ।
जिसके हाथों में फूल सजे,
पर मंजिल मे हो शूल बिछे ।
ना बनना उसके मीत कभी,
आकर्षण कितना भी उपजे ।
कृष्ण सुदामा जैसी मैत्री,
मिलती किस्मत वालों को
विपदा मे जो साथ निभाये
मीत कहाने लायक वो ।
श्रीमती सुषमा दीक्षित शुक्ला (लखनऊ, उत्तरप्रदेश, भारत)
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