• २०८० मंसिर २० बुधबार

क्या मिलेगा ?

अनिल अनिरुध्द

अनिल अनिरुध्द

पत्थरों पर सिर पटककर क्या मिलेगा
बेसुध पड़े लोगों से तुमको क्या मिलेगा
ज़िन्दगी जीवित भी है या मर चुकी
दूसरों को यह बताकर क्या मिलेगा ?

मिल गये दीवार तुमको चार जब अंदर रहो
बेवजह बाहर निकलकर क्या मिलेगा
रोटियाँ तो घर के अंदर ही पकेंगी
सड़क पर यूँही भटककर क्या मिलेगा ?

गुनगुनाओ गीत कुछ झूमो जरा
प्रीतकी गंगा हृदय में आ बसेगी
भावनाओं की यहाँ लगती है बोली
अश्रु की गंगा बहाकर क्या मिलेगा ?

इस जगत में अकड़कर जीना ही होगा
लोग की बातें तो बस बातें रहेंगी
अपनी धुन में मस्त रहकर गीत गाओ
मुस्कुराओ यार मेरे सब मिलेगा ।
मुस्कुराओ यार मेरे सब मिलेगा ।


अनिल अनिरुध्द (राँची, झारखंड, भारत)
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