• २०८१ माघ २ बुधबार

हम जीतेंगे हर बार

डॉ राजीवकुमार पाण्डेय

डॉ राजीवकुमार पाण्डेय

बुरा वक्तभी टल जाएगा,
आज नहीं तो कल आएगा
दन्तशावकों का गणनायक
निश्चित ही कल हल पायेगा ।
जंग जीतने के आदी हैं, करते नहीं हार स्वीकार ।
जीतेंगे हर बार जीतेंगे हर बार ।

ऋषि अस्थि से बज्र बनाते ।
कंगूरों पर ध्वज फहराते ।
ऋषि अगस्त्य के हम वंसज हैं,
सिन्धु हमेशा रहे सुखाते ।
बातें करते आँख डालकर, करते नहीं कभी मनुहार ।
जीतेंगे हर बार जीतेंगे हर बार ।

आशाओं के कुसुम खिलेंगे ।
रिश्ते नाते गले मिलेंगे ।
कैद घोसलों में परियाँ  हैं,
उनके के भी पर निकलेंगे ।
बहुत देर तक क्या रह सकती, अपने म्यानों में तलवार ।
जीतेंगे हर बार जीतेंगे हर बार ।

सफल नही हो सकती चाल ।
रक्षक अपना है महाकाल ।
हमभी काफी बदल चुके हैं,
अब नहीं करते दूजा गाल ।
सदा सिकन्दर पाते आये, राजा पोरस से प्रतिकार ।
जीतेंगे हर बार जीतेंगे हर बार ।

प्रेममार्ग के हम अनुयायी ।
विश्वबन्धु की नीति बनाई ।
सहन शक्ति है केवल सौ तक,
गर्दन उसके बाद उड़ाई ।
सेल्यूकस भी चन्द्रगुप्तको, हेलनका देता उपहार ।
जीतेंगे हर बार जीतेंगे हर बार ।

चट्टानों पर फसल उगेगी ।
केसर क्यारी फिर महकेगी ।
कभी अमावस रोक न पायी
पूनमकी आभा दमकेगी ।
अत्याचारी गौरी को भी, साँसे देते षोडष बार ।
जीतेंगे हर बार जीतेंगे हर बार ।


डॉ राजीवकुमार पाण्डेय (गजियावाद, भारत)
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