महिला दिवस पर गोष्ठीका आयोजन था । गोष्ठी में महिलाएँ कम थीं और पुरूष ज्यादा । महिलाओं ने अपने प्रतिनकारात्मक दृष्टिकोण के लिए धर्म, परंपरा, पितृवादी और मनुवादी सोच को जिम्मेदार ठहराया । कुछ आधुनिकाओं ने भूत में स्त्रियों के दुर्दशा पर अपना तथ्यात्मक पक्ष रखा तथा आज के संदर्भ में समाधान भी सुझाया और इस बात पर जोर दिया कि स्त्रियों को देह से जोड़कर न देखाजाए । कुछ महिलाएँ इस बात से परेशान थीं कि रामायण और महाभारत के युद्ध का इल्जाम भी उनपर ही लगाया जाता है ।
पुरूष वक्ताओं ने महिलाओं के कथनों का आंशिक समर्थन किया । किसी ने स्त्रीको परिवार की धुरी, सभ्यता और संस्कृतिका रक्षक बताया तो किसी ने उसे सृजन की देवी, गृह लक्ष्मी तथा श्री लक्ष्मी कहा । किसीको उसमें धैर्य, प्रेम और वात्सल्यका त्रिवेणी दिखातो किसीको उसमें दुर्गा की शक्ति दिखी तो कुछ ने उन्हें गार्गी, सुवर्चला, सीता और द्रौपदी के तौर पर याद किया । एक महाशय ने नए शब्दोंका सहारा लेते हुए औरतों को ‘मल्टी टास्कर’ तथा ‘सेवेरल इनवन’ कहा ।
गोष्ठी के समापन के वक्त अध्यक्षा ने रचनात्मक परिचर्चा के लिए सभी सुधी आगंतुकों का धन्यवाद ज्ञापन किया और साथ ही साथ पुरूषों द्वारा महिलाओं के महिमा मंडन से अभिभूत होकर अपने को एक सवाल पूछने से नहीं रोक पाई, “अच्छा, तो कितने पुरूष अगले जन्म में महिला बनना चाहते हैं ? कृपया हाथ उठाएँ ।“
अध्यक्षा की निगाहें एक अदद उठे हाथको तरस गईं ।
(बक्सर, भारत निवासी अरिमर्दन कुमार सिंह चर्चित कवि हैं ।)
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