• २०८१ फागुन ६ मङ्गलबार

किसान

अनिल कुमार मिश्र

अनिल कुमार मिश्र

सुबह- शाम, दिन- रात अनवरत
श्रम के पर्याय हैं वीर किसान
कर्म- साधना के साधक हैं
अपने- अपने देशकी शान ।

घनघोर हो बारिश, सर्दी, ठिठुरन
जेठकी तपती दुपहरिया
बढ़ें फसल खेतों में निशि दिन
अपने किसान हम सबकी शान ।

जीवन के झंझावातों में
दुःख के भारी बरसातों में
चलते रहते हल खेतों में
बसते हैं प्रभु इनके मन में ।

दुःखभी सहते, हँसते, हर्षाते
हम सबको है इन पर आन
रीढ़ राष्ट्र की इनसे ही है
देश- देश की शान किसान ।

हों परिमार्जित, परिवर्द्धिधतनित- नित
पुष्पित हों ये देश की शान
सब जन भावुक हों इनके प्रति
तेरी जय हो वीर किसान !

(राँची, झारखंड, भारत निवासी अनिल कुमार मिश्र चर्चित कवि हैं ।)