• २०८१ असोज २९ मङ्गलबार

इन्सान होनें की प्रतीक्षा में

विधान आचार्य

विधान आचार्य


मुझे दिखाओ तुम सत्य की राह
मुझे दिखाओ तुम शान्ति की राह
मै खो गया हूँ अपने आप से
चाहता हूँ कि खुद को मिल जाऊँ मैं ।

समर्पण और त्याग हैं नहीं मेरे में
क्षमा भागी है ड़र के मारे दूर मुझ से
दया और स्नेह तो हैं ही नहीं
दोस्ती तो कब से दूर जा कर दुबकी है ।

कैसे मैं जिऊँगा ?
अगर तुम मुझे अपनी ओर नही खींचोगे
मुझे खींचो तुम्हारे प्रेम की ओर
नकेल से ज्ञान की अथाह सागर की ओर ।

हे गुरू !
मुझे तुम आलोक की तरफ ले जाओ
मै ऐसा एक अन्धकार में जी रहा हूं
जिस में खुद को स्पर्श कर के ही मालुम होता है
कि मैं जिन्दा हूं अभी तक ।

मै तो सांस में एक लाश समान हूं
मुझे ले जाओ जिन्दगी की ओर
मैं एक विराट् भ्रम में हूं
मै खुद को एक सम्राट् समझता हूं
मै अहङ्कार हूं
मुझे इस से मुक्ति दो
और मुझे ज्ञान का दास बना दो ।


मै अज्ञान का सम्राट् जी रहा हूं
विवेक का सेवक में अनूदित होना चाहता हूं
असतोमा सद्गमय
मिथ्या से सत्य की ओर जा पाऊँ
तमसोमा ज्योतिर्गमय
अन्धेरे से उजाले की बस्ती की ओर जा पाऊँ
मृत्योर्मा अमृतंगमय
मरणशीलता से अमरता की ओर जा पाऊँ ।

मेरी है प्रार्थना तुम को
ओम् शान्ति
बिस्मिल्लाह रहमान- ए- रहीम
हे परमेश्वर,
बुद्धम् शरणम् गच्छामि
ओम् णमो अरिहन्ताणम् ।

मैनें अपनी मुक्ति के लिये तुम्हे चयन की है
तुम्हारा है काम कि मेरी शुद्धि करो
और मुझे एक इन्सान में रूपान्तरित करो ।

क्या तुम ऐसा कर सकते हो
सचमुच ?
मैं इस प्रतीक्षा में हूं कि मैं इन्सान बनूँ ।
(भूख, कवितासङ्रग्रह से)


(विधान आचार्य चर्चित कवि, साहित्यकार है)
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