• २०८१ श्रावाण ११ शुक्रबार

कोरोना संक्रमित

संजय कुमार सिंह

संजय कुमार सिंह

लड़के ने कहा,“मैं तुम्हारे लिए सब कुछ छोड़ सकता हूँ
यह दुनिया- जहान, धन- दौलत और तख्तो- ताज ! तुम्हारे प्यार के सामने सब कुछ तुच्छ हैं मेरे लिए…“
“ यह मैं जानती हूँ ।“ लड़की संजीदा होकर बोली ।
“तुम कुछ हिम्मत करो, तो ये अंधी दीवारें टूट जाएँगी । हम भाग कर कोर्ट मैरिज कर लेंगे…“ लड़के ने पूरे जोशो- खरोश से कहा ।
“ऐसा हो सकता है ।“ लड़की की आवाज संयत थी,“ यह मुमकिन है, यह हमारा हक है..“
“फिर देर किस बात की है ? हमारा प्यार एक मिसाल होगा लोगों के लिए । कट्टर माता- पिता के लिए सबक भी… इतिहास की उन स्मृतियों की तरह… जिनमें दीवारों में चिनवा कर भी कोई प्रेम को हरा नहीं सका ! “लड़का खयाली सपने में डूबते हुए बोला,“ हमें अब यह फैसला खुद से ले ही लेना चाहिए ।“
लड़की कुछ देर के लिए गुमा गयी, जैसे उसकी साँस अटक गयी हो । उसने गला साफ किया, तो उसे तेज खाँसी आयी,“ मैं भी यही सोचती हूँ, पर मैं तुमसे झूठ कैसे बोल सकती हूँ । अभी मैं कोरोना संक्रमित हूँ… मेरे माता-पिता भी आइसोलेशन में हैं.. पहले ठीक तो हो लूँ…“ इसके बाद धीरे से फोन का कनेक्शन कट गया ।


(संजय कुमार सिंह, पूर्णिया महिला कलेज के प्रिंसिपल हैं ।)
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